डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ विवाद (Donald Trump Tariff Dispute) अमेरिका की राजनीति और अर्थव्यवस्था का बड़ा मुद्दा बन गया है। अमेरिकी अपीलीय अदालत ने ट्रंप की ज्यादातर टैरिफ नीतियों को गैरकानूनी करार दिया है। हालांकि ट्रंप ने इस फैसले को मानने से इंकार कर दिया और कहा कि उनकी टैरिफ पॉलिसी बरकरार है। उन्होंने साफ कहा कि “टैरिफ ही ताकत का हथियार हैं” और वे इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएंगे।
अदालत का बड़ा फैसला और डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ विवाद
वॉशिंगटन डीसी स्थित यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर द फेडरल सर्किट ने कहा कि राष्ट्रपति टैरिफ या कर लगाने का अधिकार नहीं रखते। यह अधिकार केवल कांग्रेस को है। अदालत ने ट्रंप द्वारा लगाए गए कुछ रिसिप्रोकल टैरिफ और चीन, कनाडा व मेक्सिको पर लगाए गए शुल्कों को रद्द कर दिया। हालांकि स्टील और एल्युमिनियम पर लगे टैरिफ बने रहेंगे।
ट्रंप का पलटवार: “टैरिफ ही हैं ताकत का हथियार”
डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिखा –
👉 “सभी टैरिफ अब भी लागू हैं। एक पक्षपाती अदालत ने गलत तरीके से कहा कि टैरिफ हटाए जाने चाहिए, लेकिन जीत आखिरकार अमेरिका की ही होगी।”
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर ये टैरिफ हटाए गए तो अमेरिका आर्थिक रूप से कमजोर हो जाएगा और इसे “पूर्ण आपदा” कहा जा सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ विवाद और कानून का पक्ष
ट्रंप ने 1977 के International Emergency Economic Powers Act (IEEPA) के तहत टैरिफ को सही ठहराया था। यह कानून सामान्य तौर पर आपातकालीन स्थिति में संपत्ति फ्रीज करने या प्रतिबंध लगाने के लिए इस्तेमाल होता है। अदालत का मानना है कि कांग्रेस ने कभी भी राष्ट्रपति को असीमित टैरिफ लगाने का अधिकार नहीं दिया।
किन्होंने दी चुनौती?
यह केस पांच छोटे अमेरिकी व्यवसायों और 12 डेमोक्रेट शासित राज्यों की याचिका पर आया। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि संविधान के अनुसार टैरिफ लगाने का अधिकार केवल कांग्रेस के पास है, राष्ट्रपति के पास नहीं।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ विवाद ने अमेरिका में सत्ता और संविधान की सीमाओं पर बड़ी बहस छेड़ दी है। अदालत ने ट्रंप की नीतियों को असंवैधानिक करार दिया, लेकिन ट्रंप सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई जारी रखने के मूड में हैं। अब देखना होगा कि यह विवाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था और व्यापार नीतियों पर कितना असर डालता है।
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