पीयूष पांडे का निधन: एक युग का अंत
भारत के विज्ञापन जगत के महान क्रिएटिव डायरेक्टर और ‘एड गुरु’ कहे जाने वाले पद्मश्री पीयूष पांडे का 70 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे कुछ समय से शरीर में संक्रमण से जूझ रहे थे। जानकारी के अनुसार उन्होंने मुंबई में अंतिम सांस ली। उनके निधन से विज्ञापन जगत, मीडिया और क्रिएटिव दुनिया में शोक की लहर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा,
“पीयूष पांडे क्रिएटिविटी और इनोवेशन के प्रतीक थे। उन्होंने भारतीय विज्ञापन जगत को नई पहचान दी। उनके साथ हुई मुलाकातें और चर्चाएं हमेशा याद रहेंगी।”
27 की उम्र में शुरू हुआ सफर
राजस्थान के जन्मे पीयूष पांडे ने 27 वर्ष की आयु में विज्ञापन जगत में कदम रखा। उन्होंने अपने भाई प्रसून पांडे के साथ शुरुआती दौर में रेडियो जिंगल्स बनाए। 1982 में वे ओगिल्वी (Ogilvy India) से जुड़े और अपनी क्रिएटिविटी के दम पर 1994 में कंपनी के बोर्ड में जगह पाई।
2016 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। वहीं 2024 में उन्हें LIA लीजेंड अवॉर्ड से भी नवाज़ा गया था।
भारत के दिल में बस गए उनके ये यादगार एड
1. फेविकॉल का “ट्रक वाला विज्ञापन” (2007)
एक ट्रक पर बैठे लोगों का दृश्य, जो ऊबड़-खाबड़ सड़क पर भी नहीं गिरते — इस विज्ञापन ने “चिपकने” के मायने ही बदल दिए। फेविकॉल को इस एड ने हर घर का ब्रांड बना दिया।
2. कैडबरी का “कुछ खास है जिंदगी में” (2007)
क्रिकेट मैदान पर छक्का मारने वाला बच्चा और उसकी खुशी – इस विज्ञापन ने जिंदगी की मिठास को नए अंदाज़ में दिखाया। यह लाइन आज भी याद की जाती है – “कुछ खास है जिंदगी में!”
3. एशियन पेंट्स का “हर घर कुछ कहता है” (2002)
घर की दीवारों पर छुपी यादों की कहानी, जिसने हर दर्शक को भावुक कर दिया। इस टैगलाइन ने एशियन पेंट्स को भावनात्मक रूप से लोगों के दिल से जोड़ दिया।
4. हच (वोडाफोन) का “पग वाला विज्ञापन” (2003)
एक बच्चे का हर जगह उसके साथ चलता प्यारा पग डॉग – जिसने “कनेक्टिविटी” को दोस्ती और विश्वास का प्रतीक बना दिया। “भाई, हच है ना!” – यह डायलॉग आज भी लोगों को याद है।
5. बीजेपी का “अबकी बार मोदी सरकार” (2014)
2014 में देशभर में गूंजा यह नारा पीयूष पांडे की रचना थी। उन्होंने इसे सिर्फ 50 दिनों में तैयार किया था। इस कैंपेन में 200 से अधिक टीवी एड, 100 रेडियो और 100 से ज्यादा प्रिंट एड शामिल थे।
6. पल्स पोलियो का “दो बूंदें जिंदगी की”
सरकारी अभियानों को आम जनता से जोड़ने की उनकी क्षमता इस एड में दिखी। यह संदेश आज भी लोगों की ज़ुबान पर है।
रचनात्मकता के सच्चे प्रतीक
पीयूष पांडे सिर्फ एड बनाने वाले नहीं थे, वे कहानियां गढ़ने वाले थे — जो उत्पाद नहीं, भावनाएं बेचते थे।
उनका मानना था,
“विज्ञापन वही सफल है जो दिल को छू जाए।”
उनकी कल्पनाशक्ति ने भारतीय विज्ञापन उद्योग को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई।
अंतिम विचार
आज जब हम सोशल मीडिया, डिजिटल मार्केटिंग और ब्रांडिंग के युग में हैं, तब भी पीयूष पांडे की बनाई टैगलाइन और विज्ञापन हमें सिखाते हैं कि एक अच्छा आइडिया कभी पुराना नहीं होता।
उनकी रचनात्मकता, सादगी और भारतीयता विज्ञापन जगत की आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनकर हमेशा जीवित रहेगी।
