नई दिल्ली।
भारत अमेरिका रिश्ते अक्सर उतार-चढ़ाव से गुज़रते रहे हैं। कभी व्यापारिक समझौते पर सहमति बनती है तो कभी टैरिफ और शुल्क विवाद रिश्तों में खटास पैदा कर देते हैं। लेकिन इसके बावजूद दोनों देशों के बीच दोस्ती और रणनीतिक साझेदारी बनी रही है। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय आयात पर भारी टैरिफ लगाए जाने के बाद विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने भारत-अमेरिका संबंधों का ताजा हाल साझा किया।
जयशंकर ने साफ कहा कि यह वैसी दोस्ती नहीं है जिसमें मामूली विवाद के बाद “कट्टी” कर ली जाए। बातचीत जारी रहेगी, लेकिन भारत अपने किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करेगा।
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक विवाद की जड़
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत से आने वाले कुछ उत्पादों पर 50% तक टैरिफ लगाने की घोषणा की। यह फैसला अचानक लिया गया और भारत के लिए यह एक झटका साबित हुआ। अमेरिका का तर्क था कि भारतीय निर्यातक अमेरिकी बाजार में ज्यादा फायदा उठा रहे हैं जबकि अमेरिकी कंपनियों को बराबरी का मौका नहीं मिल रहा।
भारत के लिए यह कदम इसलिए कठिन है क्योंकि कृषि, वस्त्र और छोटे उद्योगों से जुड़े उत्पाद अमेरिका में बड़ी संख्या में निर्यात होते हैं। टैरिफ बढ़ने से इन उत्पादों की कीमतें अमेरिकी बाजार में ज्यादा हो जाएंगी और उनकी मांग घट सकती है। इससे भारतीय किसानों और छोटे उत्पादकों पर सीधा असर पड़ने की आशंका है।
जयशंकर का बयान: बातचीत जारी लेकिन “रेड लाइन” कायम
विदेश मंत्री जयशंकर ने इकोनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम 2025 में स्पष्ट किया कि भारत और अमेरिका के बीच संवाद बंद नहीं हुआ है। वार्ता जारी है और दोनों देश समाधान की तलाश में हैं।
लेकिन साथ ही उन्होंने साफ किया कि भारत ने कुछ “रेड लाइन” तय कर रखी हैं। जयशंकर ने कहा:
“हमारे किसानों और छोटे उत्पादकों के हित सर्वोपरि हैं। इनसे समझौता करना संभव नहीं। अगर व्यापार समझौते में हमें नुकसान दिखेगा तो हम कभी भी हां नहीं कहेंगे।”
रूस से तेल आयात पर अमेरिका को करारा जवाब
भारत और अमेरिका के रिश्तों में हाल ही में एक और मुद्दा उभरा है – रूस से तेल आयात। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से कच्चा तेल न खरीदे, क्योंकि रूस पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाए हैं। लेकिन भारत का तर्क है कि उसकी ऊर्जा जरूरतें बहुत बड़ी हैं और सस्ती कीमत पर तेल मिलना राष्ट्रीय हित के लिए जरूरी है।
जयशंकर ने मंच से अमेरिका को दो टूक जवाब दिया। उन्होंने कहा कि अगर यह मुद्दा सिर्फ रूस से तेल का है तो फिर चीन पर कोई सवाल क्यों नहीं उठाया जाता? चीन रूस से सबसे बड़ा आयातक है, लेकिन उसके खिलाफ कोई टैरिफ या पाबंदी नहीं लगाई गई।
जयशंकर ने साफ कहा:
“भारत अपनी ऊर्जा नीति सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रीय हितों के आधार पर तय करेगा। हम किसी दबाव में नहीं आएंगे और न ही किसी के कहने पर अपने फैसले बदलेंगे।”
ट्रंप की विदेश नीति पर टिप्पणी
जयशंकर ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की विदेश नीति को लेकर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि उन्होंने पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति को इतनी सार्वजनिक और आक्रामक शैली में वैश्विक फैसले लेते नहीं देखा। यह बदलाव केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया इसके असर को महसूस कर रही है।
उनका इशारा इस ओर था कि ट्रंप का काम करने का तरीका पारंपरिक अमेरिकी विदेश नीति से अलग है। वे जल्दी फैसले लेते हैं और कई बार इन फैसलों की घोषणा भी अचानक कर देते हैं। इससे मित्र देशों के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं।
भारत का संतुलन साधने वाला रुख
भारत लंबे समय से यह कोशिश करता रहा है कि अमेरिका और रूस दोनों के साथ उसके संबंध अच्छे बने रहें। अमेरिका भारत का बड़ा व्यापारिक और रणनीतिक साझेदार है। वहीं रूस से भारत की पुरानी रक्षा और ऊर्जा साझेदारी है।
ऐसे में भारत के लिए किसी एक पक्ष का पूरी तरह साथ देना मुश्किल है। जयशंकर ने बार-बार यह दोहराया कि भारत की विदेश नीति स्वतंत्र और भारत-केंद्रित है। यानी भारत वही फैसले करेगा जो उसके राष्ट्रीय हितों के लिए सही होंगे।
किसानों और छोटे उत्पादकों का मुद्दा क्यों अहम है?
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि और छोटे उद्योगों का बड़ा योगदान है। करोड़ों लोग इन क्षेत्रों पर निर्भर हैं। अगर अमेरिका के टैरिफ के कारण भारतीय उत्पाद वहां महंगे हो जाते हैं तो इसका असर सीधा छोटे व्यापारियों और किसानों पर पड़ेगा।
इसीलिए भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी अंतरराष्ट्रीय समझौते में अपने किसानों और छोटे उत्पादकों का बलिदान नहीं देगी। यह बात भारत की लोकतांत्रिक राजनीति से भी जुड़ी है क्योंकि किसानों की नाराज़गी का असर सीधा चुनावों पर पड़ सकता है।
भारत-अमेरिका रिश्तों का भविष्य
हालांकि व्यापारिक विवाद गंभीर है, लेकिन यह रिश्तों को तोड़ने वाला नहीं है। भारत और अमेरिका दोनों ही देश एक-दूसरे की अहमियत समझते हैं। रणनीतिक मोर्चे पर दोनों की साझेदारी जरूरी है, खासकर एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती ताकत को देखते हुए।
विशेषज्ञों का मानना है कि व्यापारिक विवाद सुलझाने में समय लगेगा, लेकिन दोनों देश सहयोग बनाए रखेंगे। अमेरिका को भारत के बड़े बाजार की जरूरत है, और भारत को तकनीक, निवेश और रणनीतिक समर्थन की।
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निष्कर्ष
विदेश मंत्री एस. जयशंकर का यह बयान भारत की स्पष्ट सोच को दर्शाता है। संदेश साफ है – दोस्ती मजबूत है, लेकिन भारत अपने किसानों, छोटे उत्पादकों और ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ें मुद्दों पर कभी समझौता नहीं करेगा।
भारत और अमेरिका के बीच बातचीत जारी रहेगी, लेकिन यह संबंध अब “बराबरी और सम्मान” पर आधारित होंगे, न कि किसी दबाव या मजबूरी पर।