भारत अमेरिका व्यापार संबंध अब दुनिया की नजरों में हैं। हाल ही में अमेरिका ने भारत पर 25% टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की घोषणा की, जबकि पाकिस्तान पर केवल 19% और बांग्लादेश-श्रीलंका पर 20% शुल्क तय किया गया। पहली नजर में यह फैसला भारत के खिलाफ दिखाई देता है, लेकिन असल सच्चाई इससे कहीं अलग है।
पाकिस्तान को ‘मजबूरी’ में तवज्जो मिलती है
दरअसल, अमेरिका की पाकिस्तान के प्रति यह ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ रणनीतिक कारणों से है।
2001 में जब अमेरिका को अफगानिस्तान में सैन्य अभियान चलाना पड़ा, तब पाकिस्तान की ज़मीन और हवाई मार्ग बेहद अहम थे। इसके अलावा, पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं, जिन्हें असुरक्षित हाथों में जाने से रोकना अमेरिका की प्राथमिकता है।
साथ ही, चीन की ओर पाकिस्तान का झुकाव भी अमेरिका को चिंतित करता है। चीन ने CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) में भारी निवेश किया है। इसलिए अमेरिका नहीं चाहता कि पाकिस्तान पूरी तरह चीन के प्रभाव में चला जाए।
बांग्लादेश – कमज़ोर अर्थव्यवस्था, कम विरोध
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत नहीं है कि वो अमेरिका के फैसलों को चुनौती दे सके।
वहीं दोनों देशों के बीच व्यापारिक आंकड़े भी बहुत कम हैं। इसलिए अमेरिका जो भी फैसला लेता है, बांग्लादेश को मानना ही पड़ता है।
भारत – अब मजबूरी नहीं, महाशक्ति है
अब बात भारत की करें तो तस्वीर पूरी तरह बदल जाती है।
भारत आज दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। उसकी विकास दर सबसे तेज़ है और उसका बाजार विश्व का सबसे बड़ा उभरता हुआ बाजार माना जाता है।
भारत अब अमेरिका समेत किसी भी देश से व्यापार बराबरी की शर्तों पर करना चाहता है।
वह अपने किसानों, खाद्य सुरक्षा और घरेलू उद्योगों की रक्षा करने में कोई समझौता नहीं करता।
GSP से बाहर किया, पर मान्यता मिल गई
2019 में अमेरिका ने भारत को GSP (Generalized System of Preferences) कार्यक्रम से बाहर कर दिया।
इसका कारण बताया गया कि भारत अब “पर्याप्त रूप से विकसित” है और उसे रियायतों की आवश्यकता नहीं।
यह एक तरह से भारत की आर्थिक मजबूती की स्वीकारोक्ति थी।
इसके विपरीत, पाकिस्तान और बांग्लादेश आज भी इस स्कीम का लाभ उठाते हैं – क्योंकि वे अब भी आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं।
ट्रंप की भाषा में छुपा था डर
डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार भारत को “टैरिफ किंग” कहा था।
असल में यह भारत के तेज़ी से बढ़ते वैश्विक दबदबे और आत्मनिर्भरता को लेकर अमेरिका की चिंता को दर्शाता है।
हालांकि अमेरिका भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करता है – रूस से तेल खरीदने का मुद्दा उठाकर या व्यापारिक धमकियां देकर – लेकिन भारत झुकता नहीं।
भारत के पास विकल्प हैं
अगर भारत अमेरिका व्यापार संबंध नहीं करेगा, तो भारत जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ, रूस जैसे कई देशों के साथ विकल्प तलाश सकता है।
दूसरी तरफ अमेरिका के लिए भारत जैसा बड़ा और भरोसेमंद बाजार खो देना घाटे का सौदा होगा।
निष्कर्ष
भारत अब कोई विकासशील, असहाय राष्ट्र नहीं है।
वह एक आत्मनिर्भर, वैश्विक महाशक्ति बन चुका है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश को दी गई राहत सिर्फ अमेरिका की रणनीतिक मजबूरी है, लेकिन भारत के साथ वह मजबूरी नहीं, समझौता करना चाहता है – और वह भी बराबरी पर।