मणिपुर ने पिछले कुछ वर्षों में जातीय संघर्ष और हिंसा का दर्दनाक दौर देखा है। अब जबकि हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं, पीएम मोदी का मणिपुर दौरा राज्य के लिए बेहद अहम माना जा रहा है। प्रधानमंत्री ने न सिर्फ चुराचांदपुर जिले में 7000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की नींव रखी, बल्कि राहत शिविरों में रह रहे विस्थापित परिवारों से भी मुलाकात की। यह दौरा लोगों में उम्मीद की एक नई किरण लेकर आया है।
हिंसा थमी लेकिन भरोसे की खाई बाकी
मणिपुर में हिंसा थमे हुए दो साल से ज्यादा हो गए हैं। गोलियों की आवाज़ अब नहीं आती, लोग बंकरों से बाहर निकल चुके हैं और बच्चे फिर से स्कूल और कॉलेज जाने लगे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि कुकी और मैतेई समुदाय के बीच आपसी विश्वास अभी भी पूरी तरह बहाल नहीं हुआ है। दोनों समुदायों के लोग एक-दूसरे के इलाकों में जाने से कतराते हैं।
बफर ज़ोन और आम लोगों की मुश्किलें
इम्फाल घाटी और पहाड़ी जिलों के बीच बने बफर ज़ोन अब सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी में हैं। चुराचांदपुर के लोग इलाज या पढ़ाई के लिए भी सीधे इम्फाल नहीं जा सकते। मजबूरी में उन्हें मिज़ोरम के आइजोल जाना पड़ता है, जिससे समय और खर्च दोनों बढ़ जाते हैं।
शिक्षा और स्वास्थ्य सबसे बड़ी चुनौती
गोलीबारी भले ही बंद हो गई हो, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी आज भी सबसे बड़ी चुनौती है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग कहते हैं कि जब तक प्रशासनिक नियंत्रण घाटी तक सीमित रहेगा, तब तक पहाड़ी जिलों का विकास अधूरा ही रहेगा।
पीएम मोदी का मणिपुर दौरा और उम्मीदें
पीएम मोदी का मणिपुर दौरा चुराचांदपुर के लोगों के लिए खास महत्व रखता है। यहां के निवासियों का मानना है कि प्रधानमंत्री की मौजूदगी ने उन्हें यह भरोसा दिलाया है कि शांति बहाली और विकास पर गंभीरता से काम होगा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि जब तक दोनों समुदायों के बीच आपसी विश्वास नहीं लौटेगा, स्थायी समाधान मुश्किल रहेगा।
आगे का रास्ता
मणिपुर आज शांति की ओर बढ़ रहा है, लेकिन यह शांति अभी अधूरी है। सबसे बड़ी चुनौती है – कुकी और मैतेई समुदायों के बीच भरोसा और रिश्तों को फिर से मजबूत करना। स्थानीय लोग कहते हैं, “हम शांति चाहते हैं, कोई भी हमेशा लड़ाई नहीं चाहता।”