जवाहरलाल-नेहरू
जवाहरलाल नेहरू

Nehru health before death: देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का निधन और उनके जीवन के अंतिम महीने

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Nehru health before death: 27 मई 1964 की दोपहर, संसद में विशेष सत्र चल रहा था। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कश्मीर पर कुछ सवालों के जवाब देने वाले थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, नेहरू सदन में नहीं पहुंचे। सांसदों ने सवाल उठाए, तभी खबर आई—प्रधानमंत्री की तबीयत अचानक बिगड़ गई है। कुछ ही देर में केंद्रीय मंत्री चिदंबरम सुब्रमण्यम सदन में आए और बोले:
“रोशनी चली गई।”

Nehru health before death: 1962 के भारत-चीन युद्ध में हार ने नेहरू को गहरे झकझोर दिया। उनकी नीति, सैन्य तैयारी और नेतृत्व पर सवाल उठे।

Nehru health before death: रामचंद्र गुहा अपनी किताब India After Gandhi में लिखते हैं:

“नेहरू के कंधे झुक गए थे, चेहरा थका हुआ और चाल कमजोर हो गई थी।”

18 जून 1963 को वे इंदिरा गांधी और पोते राजीव व संजय के साथ कश्मीर गए। श्रीनगर से वे पहलगाम पहुँचे, जहां उन्होंने परिवार संग कुछ शांत दिन बिताए। उन्होंने आरू वैली और कोलाहोई ग्लेशियर की सैर की। 10 दिन बाद, 28 जून को दिल्ली लौटे।

अगस्त 1963: भारत का पहला अविश्वास प्रस्ताव

अविश्वास प्रस्ताव तीखी बहस करते हुए फोटो

चीन से हार के बाद नेहरू की लोकप्रियता घटी। अगस्त 1963 में जे. बी. कृपलानी ने संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया।
चार दिन चली बहस में नेहरू ने हर दिन भाग लिया।
उन्होंने कहा:

“यह प्रस्ताव अवास्तविक है। सरकार को हटाने की कोई स्थिति नहीं है।”

वोटिंग में प्रस्ताव को सिर्फ 62 वोट मिले, जबकि 347 सांसदों ने इसे खारिज कर दिया।

लेकिन यह स्पष्ट था—अब स्वास्थ्य पर असर दिख रहा था। उनकी चाल धीमी, चेहरा बुझा हुआ और भाषण भी कमज़ोर हो रहे थे।

Nehru health before death: जनवरी 1964: स्ट्रोक और शरीर का एक हिस्सा पैरालाइज

6 जनवरी को भुवनेश्वर में कांग्रेस की मीटिंग के दौरान नेहरू को स्ट्रोक आया। उनकी बेटी इंदिरा गांधी तुरंत उन्हें मीटिंग से बाहर ले गईं।
आधिकारिक बयान में सिर्फ हाई ब्लड प्रेशर की बात कही गई, लेकिन असल में दायां हिस्सा पैरालाइज हो गया था।

गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) की परेड में वे पहली बार सार्वजनिक रूप से दिखाई दिए। वे व्हीलचेयर में थे, पर फिजियोथेरेपी के चलते धीरे-धीरे चलना शुरू कर चुके थे।

अप्रैल 1964: शेख अब्दुल्ला से मुलाकात, कश्मीर मसले पर आखिरी कोशिश

शेख अब्दुल्ला से मुलाकात, कश्मीर मसले पर आखिरी कोशिश

शेख अब्दुल्ला को 11 साल बाद जेल से रिहा किया गया। 29 अप्रैल को वह नेहरू से मिलने तीन मूर्ति भवन पहुंचे।
गर्मजोशी से गले मिले और कश्मीर मुद्दे को सुलझाने की दिशा में बात हुई।

शेख अब्दुल्ला बोले:

“नेहरू भारत का प्रतीक हैं। उनके बाद इतनी शिद्दत से कश्मीर की समस्या सुलझाने की क्षमता किसी में नहीं दिखती।”

24 मई को अब्दुल्ला पाकिस्तान रवाना हुए, लेकिन उससे पहले ही नेहरू का निधन हो गया।

Nehru health before death: 22 मई: प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा – “मैं इतने जल्दी मरने नहीं वाला”

22 मई को नेहरू ने आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
जब पत्रकार ने पूछा –
“क्या आपको जीते जी उत्तराधिकारी तय नहीं कर देना चाहिए?”
तो नेहरू मुस्कराकर बोले:

“मैं इतने जल्दी मरने नहीं वाला।”
पूरा कमरा तालियों से गूंज उठा।

23-26 मई: देहरादून में शांति की खोज

23 मई को नेहरू देहरादून पहुंचे।
वे घंटों गेस्ट हाउस में लगे कपूर के पेड़ के नीचे बैठे रहते, पक्षियों की आवाज़ें सुनते और कभी-कभी डायरी में कुछ लिखते।

उनका मन देहरादून में रम गया था, लेकिन 27 मई को दिल्ली में मीटिंग थी। 26 मई की दोपहर वे लौटे।

पत्रकार राज कंवर ने बताया:

“नेहरू ने जाते समय हाथ हिलाया, पर वह मुस्कान रुखी और हाथ थका हुआ था।”

27 मई 1964: अंतिम सुबह और आखिरी विदाई

रात नींद नहीं आई, नींद की गोली ली। फिर भी सुबह 6:25 बजे उठे। शरीर में दर्द था, लेकिन किसी को नहीं बताया।
कुछ देर बाद जब सहयोगी नत्थू जगे, तब नेहरू की हालत का पता चला। डॉक्टर आए, पर तब तक देर हो चुकी थी।

दोपहर 1:44 बजे, भारत के पहले प्रधानमंत्री का देहांत हो गया।

नेहरू की अंतिम इच्छा

नेहरू की इच्छा थी कि:

“मेरी अस्थियां गंगा में बहाई जाएं और बाकी उन खेतों में बिखेरी जाएं, जहां भारत के किसान मेहनत करते हैं।”

12 जून 1964 को, इंदिरा गांधी ने एयरफोर्स की मदद से उनकी अस्थियां पहलगाम, कश्मीर और हिमालय की वादियों में बिखेरीं—जहां नेहरू ने अपने जीवन के कुछ शांत पल बिताए थे।

Digital Jharokha की ओर से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू जी की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि एवं सादर नमन।

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