पिछले कुछ महीनों से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत अमेरिका टैरिफ विवाद छाया हुआ है। अमेरिका का आरोप है कि भारत रूस से तेल खरीदकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहा है। साथ ही, उसका कहना है कि इससे अप्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन युद्ध भी लंबा खिंच रहा है। दूसरी ओर, भारत का जवाब है कि उसकी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हित सबसे पहले हैं। इसलिए वह किसी दबाव में अपनी नीति नहीं बदलेगा।
अमेरिका का आरोप: भारत युद्ध को बढ़ावा दे रहा है
अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में भारत पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर उसे रिफाइन करता है। इससे बड़ा मुनाफा कमाता है और यह पैसा रूस की अर्थव्यवस्था को सहारा देता है। नतीजतन, रूस हथियार बना रहा है और यूक्रेन में जंग तेज हो रही है।
व्हाइट हाउस के सलाहकार पीटर नवारो का दावा है कि राष्ट्रपति ट्रंप भारत पर टैरिफ 27 अगस्त के बाद भी जारी रख सकते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत अमेरिका से सामान बेचकर पैसा कमाता है। फिर उसी पैसे से रूस से तेल खरीदता है और भारी लाभ कमाता है। यही कारण है कि भारत अमेरिका टैरिफ विवाद और गहराता जा रहा है।
भारत का रुख: ऊर्जा सुरक्षा सर्वोपरि
हालांकि अमेरिका दबाव बना रहा है, लेकिन भारत ने स्पष्ट किया है कि उसकी प्राथमिकता अलग है। भारत का कहना है कि रूस से तेल खरीदना उसकी ऊर्जा जरूरतों पर आधारित है। एक विकासशील देश होने के नाते भारत को सस्ती ऊर्जा चाहिए। इसलिए यह आयात जरूरी है ताकि उद्योग चलते रहें और जनता को राहत मिले।
इसके अलावा, भारत का मानना है कि वैश्विक तेल बाज़ार अस्थिर है। ऐसे में रूस से तेल खरीदना व्यावहारिक और किफायती विकल्प है। यही कारण है कि भारत किसी बाहरी दबाव में अपनी नीति नहीं बदलेगा।
अमेरिका की दोहरी नीति
इस विवाद में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अमेरिका चीन पर चुप क्यों है। चीन भी रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीद रहा है। इसके बावजूद वॉशिंगटन ने कभी उस पर कड़ा कदम नहीं उठाया।
दूसरी ओर, भारत को लगातार चेतावनी मिल रही है। अमेरिकी मीडिया ने भी इस पर सवाल उठाए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका चीन से टकराने से बचता है। लेकिन भारत को वह आसान लक्ष्य मानता है। इसलिए भारत अमेरिका टैरिफ विवाद को बार-बार उछाला जाता है।
पीएम मोदी की तारीफ और चेतावनी
दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका केवल आलोचना ही नहीं कर रहा। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ भी करता है। पीटर नवारो ने मोदी को महान नेता बताया।
हालांकि, उन्होंने चेतावनी भी दी। नवारो का कहना था कि भारत को वैश्विक शांति में अपनी भूमिका समझनी चाहिए। रूस से तेल खरीदकर युद्ध को बढ़ावा देना सही नहीं है। यह बयान साफ दिखाता है कि अमेरिका भारत को पूरी तरह नाराज़ नहीं करना चाहता।
भारत की आर्थिक रणनीति
भारत की रणनीति स्पष्ट है। रूस से सस्ता तेल खरीदकर वह अपनी अर्थव्यवस्था को राहत देता है और जनता को महंगाई से बचाता है। अगर भारत अचानक आयात रोक दे तो वैश्विक बाज़ार में कीमतें और बढ़ सकती हैं। नतीजा यह होगा कि पूरी दुनिया प्रभावित होगी।
इसके अलावा, भारत का कहना है कि उसके सभी सौदे अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत होते हैं। इसलिए उन पर सवाल उठाना गलत है। ऊर्जा सुरक्षा किसी भी देश की संप्रभुता का हिस्सा है। इस पर बाहरी दखल स्वीकार्य नहीं है।
वैश्विक प्रभाव और भारत की भूमिका
आज भारत ऊर्जा आयात का सबसे बड़ा बाज़ार बन चुका है। इस बीच, अमेरिका जानता है कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखता है तो उसकी रणनीति कमजोर होगी। इसलिए वॉशिंगटन लगातार दबाव डाल रहा है।
लेकिन भारत की नीति “मल्टी-अलाइनमेंट” पर आधारित है। यानी भारत सभी देशों से अपने हितों के आधार पर संबंध रखता है। यही वजह है कि वह रूस से तेल खरीदने के साथ-साथ अमेरिका और यूरोप के साथ भी मजबूत व्यापार कर रहा है।
भारत अमेरिका व्यापार संबंध: टैरिफ विवाद और भविष्य की चुनौतियां
निष्कर्ष
आखिरकार यह साफ हो चुका है कि भारत अमेरिका टैरिफ विवाद केवल व्यापार तक सीमित नहीं है। इसके पीछे वैश्विक राजनीति और भू-रणनीति दोनों छिपी हैं। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए और पश्चिमी देशों का साथ दे।
लेकिन भारत का रुख साफ है। उसकी प्राथमिकता ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हित हैं। इसलिए यह तय है कि भारत किसी दबाव में अपनी नीतियां नहीं बदलेगा। आने वाले समय में यह विवाद कैसे सुलझेगा, यह दोनों देशों की कूटनीति पर निर्भर करेगा।