भारत और चीन के बीच संबंध हमेशा से एशियाई राजनीति और वैश्विक कूटनीति के केंद्र में रहे हैं। … ऐसे में PM Modi-Xi Jinping Meeting एक बार फिर सुर्खियों में है।
31 अगस्त को दोनों नेता शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के मौके पर तियानजिन में आमने-सामने होंगे। यह बैठक कई मायनों में ऐतिहासिक होगी क्योंकि यह पिछले सात वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी की पहली चीन यात्रा है। साथ ही, यह गलवान घाटी में 2020 के तनावपूर्ण टकराव के बाद दोनों नेताओं की पहली मुलाकात भी होगी।
ट्रंप के टैरिफ वॉर की पृष्ठभूमि
इस मुलाकात की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि यह अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा छेड़े गए टैरिफ वॉर की गूंज के बीच हो रही है। अमेरिका और चीन के बीच चल रही इस व्यापारिक जंग ने वैश्विक बाजारों में अस्थिरता पैदा कर दी है। भारत, जो खुद उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, इस टकराव से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुआ है।
संकेत मिल रहे हैं कि मोदी-शी मुलाकात में आर्थिक मुद्दों पर भी चर्चा होगी। खासतौर पर ट्रंप की नीतियों से पैदा हुए हालात पर दोनों देशों की क्या रणनीति होगी, इस पर सबकी नजरें होंगी।
एससीओ शिखर सम्मेलन: भारत-चीन रिश्तों का नया मंच
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) एशियाई देशों का एक अहम मंच है, जिसमें सुरक्षा, व्यापार, आतंकवाद विरोधी सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर चर्चा होती है। तियानजिन में आयोजित होने वाला यह शिखर सम्मेलन भारत और चीन दोनों के लिए संबंधों को सुधारने का बड़ा अवसर माना जा रहा है।
भारत ने एससीओ के जरिए न केवल मध्य एशियाई देशों के साथ अपने रिश्तों को मजबूत किया है, बल्कि चीन और रूस जैसे बड़े देशों के साथ भी संवाद का रास्ता खोला है।
सीमा विवाद के बाद पहली अहम यात्रा
गलवान घाटी की घटना ने भारत-चीन संबंधों पर गहरी छाप छोड़ी थी। 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हुए उस टकराव में दोनों देशों के सैनिकों की जान गई और रिश्ते बेहद तनावपूर्ण हो गए।
लेकिन पिछले चार सालों में धीरे-धीरे वार्ता और समझौतों के जरिए हालात में कुछ सुधार आया है। दोनों देशों ने 3500 किलोमीटर लंबी एलएसी पर गश्त करने को लेकर एक समझौता भी किया है। ऐसे में पीएम मोदी की यह यात्रा दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली का संकेत है।
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की यादें
अगर हम पीछे देखें तो 2024 में रूस के कजान में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में दोनों नेताओं की आखिरी मुलाकात हुई थी। उस समय भी बातचीत में सीमा विवाद और व्यापारिक सहयोग मुख्य मुद्दे थे। हालांकि, कजान बैठक के बाद से अब तक दोनों देशों के बीच कई स्तर पर सकारात्मक प्रगति हुई है।
इस बार की मुलाकात से उम्मीद है कि रिश्तों को और आगे बढ़ाने की ठोस दिशा तय होगी।
आर्थिक साझेदारी पर जोर
भारत और चीन दोनों की अर्थव्यवस्थाएं तेजी से बढ़ रही हैं। भारत आईटी, फार्मा और सेवा क्षेत्र में मजबूत है, जबकि चीन विनिर्माण और निर्यात के क्षेत्र में अग्रणी है।
दोनों देश यदि सहयोग बढ़ाते हैं तो एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर हो सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि मोदी-शी मुलाकात में व्यापारिक संतुलन, निवेश और सप्लाई चेन जैसी चुनौतियों पर भी बात होगी।
कैलाश मानसरोवर यात्रा और सांस्कृतिक जुड़ाव
प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में यह स्पष्ट किया गया है कि मोदी सरकार द्विपक्षीय संबंधों में स्थिर और सकारात्मक प्रगति का स्वागत करती है। खासतौर पर कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करना इसका प्रतीक है।
भारत और चीन न केवल राजनीतिक और आर्थिक सहयोगी हैं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी गहरे जुड़े हुए हैं। बौद्ध धर्म, ऐतिहासिक सिल्क रूट और आध्यात्मिक धरोहर दोनों देशों को जोड़ते हैं।
चीन के राजदूत का बयान
भारत में चीन के राजदूत जू फीहोंग ने हाल ही में कहा कि पीएम मोदी की तियानजिन यात्रा दोनों देशों के रिश्तों को नई गति देगी। उन्होंने इस यात्रा को बेहद महत्वपूर्ण बताया और भरोसा जताया कि यह द्विपक्षीय संबंधों में सुधार और विकास का मार्ग प्रशस्त करेगी।
वैश्विक राजनीति में भारत-चीन की भूमिका
आज के समय में भारत और चीन का सहयोग वैश्विक स्तर पर बेहद अहम है। जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा संकट, आतंकवाद और तकनीकी विकास जैसे मुद्दों पर यदि दोनों देश एक साथ खड़े होते हैं, तो दुनिया पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
ट्रंप के टैरिफ वॉर ने यह साफ कर दिया है कि वैश्विक व्यापार और राजनीति अब केवल पश्चिमी देशों पर निर्भर नहीं रही। एशियाई शक्तियां अपनी भूमिका को मजबूती से स्थापित कर रही हैं।
भारत की रणनीति और भविष्य की दिशा
भारत हमेशा से “वसुधैव कुटुम्बकम्” यानी पूरी दुनिया एक परिवार है, के सिद्धांत पर विश्वास करता रहा है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी वैश्विक स्तर पर संवाद और सहयोग की बात करते हैं।
तियानजिन में होने वाली यह PM Modi Xi Jinping Meeting न केवल भारत-चीन संबंधों को नई दिशा दे सकती है, बल्कि एशियाई राजनीति में भी संतुलन कायम करने में अहम होगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस मुलाकात से आर्थिक सहयोग, सीमा विवाद और क्षेत्रीय स्थिरता पर ठोस पहल हो सकती है।
साथ ही, यह बैठक भारत की उस रणनीति को भी दर्शाती है, जिसमें वह पश्चिमी और एशियाई शक्तियों के बीच संतुलन बनाकर अपनी भूमिका मज़बूत कर रहा है। अधिक जानकारी के लिए आप SCO आधिकारिक वेबसाइट देख सकते हैं।
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निष्कर्ष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 31 अगस्त को होने वाली मुलाकात… अगर दोनों नेता सकारात्मक रुख अपनाते हैं, तो यह यात्रा वाकई ऐतिहासिक साबित हो सकती है। यही वजह है कि इस PM Modi-Xi Jinping Meeting से सबकी उम्मीदें जुड़ी हुई हैं।