ॐ जय जगदीश हरे आरती – संपूर्ण पाठ और भावार्थ
“ॐ जय जगदीश हरे” आरती का मुख्य भाव यह है कि भगवान ही हमारे सच्चे रक्षक, पालनहार और करुणामय माता-पिता हैं।

ॐ जय जगदीश हरे आरती: संपूर्ण पाठ, महत्व और भावार्थ

Spread the love

भारतीय संस्कृति में आरती का विशेष महत्व है। पूजा-पाठ के अंत में गाई जाने वाली आरती न केवल वातावरण को पवित्र करती है बल्कि भक्त और भगवान के बीच गहरा आत्मिक संबंध भी स्थापित करती है। इन्हीं आरतियों में सबसे लोकप्रिय है — ॐ जय जगदीश हरे आरती भगवान विष्णु को समर्पित है और हर मंदिर व घर में बड़े श्रद्धा भाव से गाई जाती है।

ॐ जय जगदीश हरे आरती – संपूर्ण पाठ

ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥

जो ध्यावे फल पावे,
दुःख बिनसे मन का,
स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पत्ति घर आवे,
सुख सम्पत्ति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥

मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥

तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर,
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥

तुम करुणा के सागर,
तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फल-कामी,
मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥

तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय,
किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ,
अपने शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥

विषय-विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा,
स्वामी पाप हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥

आरती का महत्व

  • यह आरती भगवान विष्णु (जगदीश) की स्तुति है।
  • इसे गाने से मन को शांति और आत्मिक बल मिलता है।
  • घर-परिवार में सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • भक्त अपने दुख और संकट भगवान को समर्पित करके राहत की प्रार्थना करते हैं।
  • यह आरती भगवान को माता-पिता और पालनकर्ता मानते हुए उनकी शरण लेने का संदेश देती है।

“अगर आप भक्ति में रुचि रखते हैं, तो आप हनुमान चालीसा और शिव आरती भी पढ़ सकते हैं।”

भावार्थ

“ॐ जय जगदीश हरे” आरती का मुख्य भाव यह है कि भगवान ही हमारे सच्चे रक्षक, पालनहार और करुणामय माता-पिता हैं।

  • उनकी शरण में जाने से जीवन के सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं।
  • सच्चे मन से उनका भजन करने वाला भक्त कभी खाली नहीं लौटता।
  • आरती का प्रत्येक पद हमें भक्ति, समर्पण और विश्वास का महत्व सिखाता है।

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

निष्कर्ष

“ॐ जय जगदीश हरे” केवल एक आरती नहीं, बल्कि यह आस्था, विश्वास और भक्ति का प्रतीक है। इसे नियमित रूप से गाने से मन और घर दोनों ही शांति और सकारात्मकता से भर जाते हैं। यही कारण है कि यह आरती हर पूजा, हर त्योहार और हर मंदिर में गाई जाती है।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *