Nehru Patel Kashmir Dispute: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक बयान में कहा कि अगर सरदार पटेल की सलाह मानी गई होती, तो पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (POK) आज भारत का हिस्सा होता। उन्होंने कहा कि पटेल चाहते थे कि जब तक पूरा POK वापस न ले लिया जाए, सेना की कार्रवाई जारी रहे। लेकिन कांग्रेस सरकार ने उनकी बात नहीं मानी।
Nehru Patel Kashmir Dispute: यह बयान 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद आया, जिसमें 26 पर्यटक मारे गए। इसके जवाब में भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” चलाया और पाकिस्तान व POK में आतंकी ठिकानों पर हमला किया।
क्या वाकई कश्मीर पर पटेल और नेहरू के बीच मतभेद थे?
इतिहासकारों और प्रमाणिक स्रोतों के अनुसार, कश्मीर को लेकर सरदार वल्लभभाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू के विचार एक जैसे नहीं थे। पटेल इस मुद्दे को जल्दी और निर्णायक सैन्य कार्रवाई से सुलझाना चाहते थे, जबकि नेहरू ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाकर शांतिपूर्ण हल निकालने का रास्ता अपनाया।
Nehru Patel Kashmir Dispute: राजमोहन गांधी की किताब ‘पटेल: ए लाइफ’ में क्या कहा गया?
इतिहासकार राजमोहन गांधी लिखते हैं कि:
- 13 सितंबर 1947 तक पटेल की कश्मीर में कोई खास रुचि नहीं थी।
- उन्होंने बलदेव सिंह को लिखा था कि अगर कश्मीर पाकिस्तान जाना चाहता है, तो जाने दो।
- लेकिन जब उसी दिन पाकिस्तान ने जूनागढ़ के विलय को स्वीकार किया, तब पटेल का नजरिया पूरी तरह बदल गया।
- उन्होंने कश्मीर को भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से अहम माना और इसमें सक्रिय रुचि ली।
पटेल का तर्क था कि अगर जिन्ना एक हिंदू बहुल राज्य (जूनागढ़) पर दावा कर सकते हैं, तो भारत एक मुस्लिम बहुल राज्य (कश्मीर) की रक्षा क्यों नहीं कर सकता?
कश्मीर के भारत में विलय और सेना की तैनाती
26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर का भारत में विलय हुआ। इससे पहले पाकिस्तान की सेनाएं और कबायली लड़ाके कश्मीर में घुसपैठ कर चुके थे।
प्रधानमंत्री हरि सिंह के प्रधानमंत्री महाजन ने भारत सरकार से तत्काल सैन्य सहायता की मांग की।
नेहरू इस पर पहले गुस्सा हुए, लेकिन पटेल ने हस्तक्षेप किया और सेना भेजने की प्रक्रिया तेज कराई।
Nehru Patel Kashmir Dispute: पटेल ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र ले जाने का विरोध किया
नेहरू और माउंटबेटन की सलाह पर भारत ने 1 जनवरी 1948 को यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र (UN) में उठाया।
पटेल इसका विरोध कर रहे थे। उनका मानना था कि जब तक ज़मीन पर स्थिति को नियंत्रित नहीं कर लिया जाए, तब तक कोई अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
राजमोहन गांधी के अनुसार, कश्मीर अब “नेहरू का विषय” बन चुका था और पटेल ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया।
कश्मीर को विशेष दर्जा: पटेल की असहमत
नेहरू की अनुपस्थिति में कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर पटेल ने कश्मीर को विशेष दर्जा देने के प्रस्ताव को स्वीकार किया, जबकि वह पहले इसके विरोधी थे।
इसके बावजूद, उन्होंने इसका खुला विरोध नहीं किया। यह दिखाता है कि वे सरकार की एकता को प्राथमिकता देते थे, भले ही निजी रूप से असहमति रखते हों।
Nehru Patel Kashmir Dispute: सरदार पटेल की आशंकाएं हुईं सच
जब भारत ने UN का रुख किया, तो पाकिस्तान ने भी अपने आरोपों की लंबी सूची पेश की और बहस की दिशा बदल गई।
यह भारत-पाक विवाद बन गया और कश्मीर मुद्दा उलझता गया।
पटेल के विचारों की व्यावहारिकता समय के साथ सही साबित होती गई।
निष्कर्ष: नेहरू और पटेल के बीच विचारों का अंतर, लेकिन राष्ट्रीय हित सर्वोपरि
- सरदार पटेल चाहते थे कि भारतीय सेना तब तक कार्रवाई करती रहे जब तक पूरा POK वापस न ले लिया जाए।
- उन्होंने कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने का विरोध किया।
- नेहरू ने शांतिपूर्ण हल की उम्मीद में यह कदम उठाया, जो दीर्घकालीन विवाद में तब्दील हो गया।
इतिहास यह जरूर दर्शाता है कि पटेल की रणनीतिक दृष्टि और व्यावहारिक सोच कई मायनों में सटीक साबित हुई, लेकिन उन्होंने नेहरू के नेतृत्व को चुनौती नहीं दी।
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