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मनुष्य का लक्ष्य क्या है?

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अब आप लोग सावधान हो जाएं दो प्रश्न है | जीवन का चरम लक्ष्य क्या है पहला प्रश्न? और वह लक्ष्य कैसे प्राप्त होगा दूसरा प्रश्न?

जितने ज्ञान है विज्ञान शास्त्र वेद और कहीं का भी कोई भी ज्ञान बस इन दो प्रश्नों के उत्तर के लिए है |

जीवन का चरम लक्ष्य क्या है | यह बोलिए मनुष्य का लक्ष्य क्या है क्योंकि और कोई प्राणी ना इन प्रश्नों को समझ सकता है. और ना इसका उपयोग कर सकता है | केवल मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो इन दोनों प्रश्नों का समाधान कर सकते हैं | वैसे तो ज्ञान में देवता मनुष्य से बहुत आगे हैं किंतु उनका कर्म करने का अधिकार नहीं है. अर्थात अगर वह जान मिले कि लक्ष्य क्या है तो उसको प्राप्त करने का उपाय नहीं कर सकते है | अर्थात केवल एक मनुष्य योनि ही कर्म यानी है शेष सब की सब भोग योनि में आती है |

तो जीव का चरम लक्ष्य क्या है इस पर अनादि काल से विचार होता आया है आज भी हो रहा है और आगे भी होगा तो ऐसा नहीं है कि यह कोई नया प्रश्न है हमारे भारत के अलावा अन्य पश्चात देशों में भी यह प्रश्न चल रहा है और इसके उत्तर भी लोगों ने दिए है |

जैसे पहला चार्वाक् का सिद्धांत तो भाई यह चार्वाक् का सिद्धांत क्या है किसने दिया इसको तो सिद्धांत दिया है हमारे देव गुरु बृहस्पति जी ने चार्वाक् का मतलब मीठी वाणी मीठी मीठी लगने वाली वाणी मतलब है जब तक जियो सुख से जियो कर्ज करके घी पीओ मरने के बाद फिर कौन आता है कौन जाता है सब बकवास है | यह सिद्धांत शरीर को ही सब कुछ मानता हैं अपना सुख यानी शरीर का सुख वैसे तो आप लोग हसेंगे की यह माहामूर्खता बृहस्पति जी का चलाया हुआ है |

तो हुआ ऐसा की एक बार देवता और असुरों का युद्ध हुआ इस युद्ध में अधिकतर असुरों का वध हो गया वह मरे जा चुके थे असुरों को मरा हुआ देखकर असुरों के गुरु शुक्राचार्य जी को बहुत दुख हुआ तो उन्होंने सोचा कि क्यों ना कोई ऐसी सिद्धि प्राप्त की जाये जिसके कारण वह मरे हुए लोगों को फिर से जीवित कर सके | इसके लिए वह तपस्या करने के लिए निकल गए | शुक्राचार्य जी के ऐसा करते देखा इंद्र को बड़ा दुख हुआ देवेंद्र चाहते थे कि शुक्राचार्य जी अपने कार्य में सफल न हो सके तो उसके लिए देवेंद्र ने अपनी अप्सराओं को शुक्राचार्य के पीछे लगा दिया उनकी तपस्या को भंग करने के लिए | उधर देवता गुरु बृहस्पति ने शुक्राचार्य का रूप धारण करके असुरों के यहाँ में चले गए असुरों ने उनका पूरी तरह से आदर और सम्मान किया वह समझ रहे थे कि हमारे गुरु शुक्राचार्य जी हैं. तब देवगुरु बृहस्पति जी ने असुरों को यह तत्वज्ञान बताया कि शरीर ही सब कुछ है इसका सुखी सब कुछ है वह चार्वाक् सिद्धांत हुआ अर्थात बृहस्पति जी ने एक सिद्धांत असुरों के लिए ताकि वह आगे ना बढ़ सकें स्पिरिचुअल पावर न पा सके अपने भोग विलास में ही लिप्त रहे |

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