पौष पूर्णिमा से प्रयागराज में संगम तट पर श्रद्धालु एक महीने तक कल्पवास करने लगते हैं। जानिए इसका महत्व और अर्थ, साथ ही जानिए इस अवधि के नियम।
कल्पवास पर्व का क्या महत्व?
कल्पवास पर्व का महत्व समझने के लिए सबसे पहले इसका अर्थ समझते है । इसका अर्थ है संगम तट पर एक महीने तक रहकर वेदों का अध्ययन और ध्यान करना। इन दिनों प्रयागराज में कुंभ मेला भी शुरू हो गया है, इसलिए कल्पवास का महत्व बहुत बढ़ गया है। कल्पवास पौष माह की 11 तारीख से शुरू होकर माघ माह की 12 तारीख तक चलता है। मान्यता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से एक महीने तक कल्पवास करने से एक कल्प के बराबर पुण्य मिलता है जो ब्रह्माजी के एक दिन के बराबर है।
ऐसे मनाया जाता हैं कल्पवास पर्व
कल्पवास पर्व के लिए श्रद्धालु प्रयाग में संगम तट पर डेरा डालते हैं और कुछ विशेष नियम और धर्म के साथ एक माह व्यतीत करते हैं। कुछ लोग कल्पवास मकर संक्रांति से भी शुरू करते हैं। ऐसी मान्यता हैं कि कल्पवास मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का साधन माना जाता है। माघ के पूरे महीने संगम पर निवास करने और पुण्य फल प्राप्त करने की इस प्रथा को कल्पवास कहा जाता है। कहा जाता है कि कल्पवास करने वाले व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है साथ ही जन्म-पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति भी मिलती है।
महाभारत के अनुसार
महाभारत के अनुसार माघ माह में कल्पवास करने से सौ वर्षों तक बिना अन्न खाए तपस्या करने के फल के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। कल्पवास की अवधि के दौरान स्वच्छ सफेद या पीले वस्त्र धारण करना उचित होता है। शास्त्रों के अनुसार कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि हो सकती है, जबकि कल्पवास तीन रात्रि, तीन माह, छह माह, छह वर्ष, 12 वर्ष या पूरे जीवन के लिए भी किया जा सकता है।
कल्पवास पर्व की मान्यता
ऐसा माना जाता हैं कि कल्पवास पर्व करने से आत्मा और शरीर दोनों का कायाकल्प होता है। कल्पवास पर्व के पहले दिन तुलसी माता और भगवान शालिग्राम की स्थापना कर उनकी पूजा की जाती है। साथ ही कल्पवास करने वाला व्यक्ति अपने निवास स्थान के पास जौ के बीज बोता है। जब यह अवधि पूरी हो जाती है तो वह इस पौधे को अपने साथ ले जाता है, जबकि तुलसी को गंगा में विसर्जित कर दिया जाता है। पुराणों में उल्लेख है कि देवता भी दुर्लभ मानव जन्म लेकर प्रयाग में कल्पवास करते हैं।
महाभारत के एक प्रसंग में उल्लेख है कि मार्कण्डेय ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा था कि प्रयाग तीर्थ सभी पापों का नाश करने वाला है और जो कोई भी व्यक्ति अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करके एक महीने तक यहां स्नान, ध्यान और कल्पवास करता है, उसके लिए स्वर्ग में स्थान सुरक्षित हो जाता है।
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