नई दिल्ली।
दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों के बढ़ते मामलों और रेबीज जैसी गंभीर बीमारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर अहम सुनवाई हुई। इस मुद्दे ने हाल के दिनों में न सिर्फ न्यायपालिका, बल्कि आम जनता, सरकार और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के बीच भी तीखी बहस छेड़ दी है। गुरुवार को तीन जजों की नई बेंच — जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन.वी. अंजारिया — ने मामले की सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रख लिया।
पृष्ठभूमि: 11 अगस्त का आदेश और विवाद
11 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दिल्ली-NCR के सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी रूप से शेल्टर होम में रखा जाए और उन्हें दोबारा सड़कों पर न छोड़ा जाए। यह आदेश रेबीज और कुत्तों के काटने के बढ़ते मामलों को देखते हुए दिया गया था।
हालांकि, इस आदेश ने तुरंत ही विवाद को जन्म दिया, क्योंकि यह पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम 2023 और पूर्व में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के विपरीत था। उन फैसलों में साफ कहा गया था कि नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उनके मूल स्थान पर वापस छोड़ा जाए।
सुनवाई में क्या हुआ: SG तुषार मेहता की दलीलें
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं।
- 37 लाख कुत्तों के काटने के मामले 2024 में दर्ज हुए, यानी लगभग 10,000 मामले प्रतिदिन।
- इनमें से 305 मौतें रेबीज के कारण हुईं, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मॉडल के अनुसार वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है।
- उन्होंने तर्क दिया कि नसबंदी से रेबीज नहीं रुकता, और भले ही कुत्तों का टीकाकरण किया जाए, फिर भी अंग-भंग और हमलों की घटनाएं बंद नहीं होंगी।
तुषार मेहता ने यह भी कहा —
“एक अल्पसंख्यक वर्ग बहुत ज़ोर से बोलता है और बहुसंख्यक वर्ग चुपचाप पीड़ित है। मैंने लोगों को मांस आदि खाते हुए देखा है और फिर खुद को पशु प्रेमी बताते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट करते देखा है।”
कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी की आपत्तियाँ
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सॉलिसिटर जनरल की दलीलों का विरोध किया और कहा कि आदेश को तत्काल स्टे (अंतरिम रोक) किया जाए। उनकी प्रमुख दलीलें थीं —
- शेल्टर होम की संख्या पहले से ही बहुत कम है, और अधिकांश भरे हुए हैं।
- कुत्तों को एक साथ ठूंसने से वे आक्रामक हो सकते हैं, आपस में लड़ सकते हैं, और मारने का खतरा बढ़ सकता है।
- नसबंदी और टीकाकरण के बाद ही उन्हें सुरक्षित स्थान पर रखना या मूल स्थान पर लौटाना चाहिए।
अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि सरकार को ABC नियम का पालन करना अनिवार्य है, और इसके लिए बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा —
- “संसद ने ABC कानून बनाया है, लेकिन इसे सही तरीके से लागू नहीं किया गया।”
- “यह सिविक बॉडीज की निष्क्रियता का परिणाम है, और सभी इस समस्या से पीड़ित हैं।”
साथ ही, कोर्ट ने यह सवाल भी उठाया कि आदेश कल ही अपलोड हुआ, फिर बिना आदेश के कुत्तों को कैसे उठाया जा रहा है?
सीजेआई के समक्ष भी उठा मामला
एक दिन पहले, यह मामला मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ के समक्ष भी उठाया गया था, जिन्होंने कहा था कि वे इस पर ध्यान देंगे।
सामाजिक प्रतिक्रिया
दिल्ली और आसपास के इलाकों में हाल ही में आवारा कुत्तों को पकड़ने के विरोध में प्रदर्शन भी हुए। पशु अधिकार संगठनों का कहना है कि आवारा कुत्ते शहर की पारिस्थितिकी का हिस्सा हैं और उन्हें हटाने के बजाय नसबंदी, टीकाकरण और भोजन प्रबंधन जैसी योजनाओं को मजबूत किया जाना चाहिए।
कानूनी और मानवीय पहलू
पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम 2023 के अनुसार —
- कुत्तों की पहचान, नसबंदी और टीकाकरण किया जाना चाहिए।
- इसके बाद उन्हें उसी स्थान पर वापस छोड़ना अनिवार्य है जहां से उन्हें उठाया गया था।
यह नियम मानवीय दृष्टिकोण को प्राथमिकता देता है और यह मानता है कि पूरी तरह से कुत्तों को हटाने से समस्या हल नहीं होती, बल्कि नए कुत्ते उस स्थान पर आ सकते हैं (Vacuum Effect)।
स्वास्थ्य और सुरक्षा का सवाल
दूसरी ओर, सरकार और कुछ नागरिक समूह तर्क देते हैं कि —
- रेबीज से होने वाली मौतें रोकी जा सकती हैं।
- छोटे बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए सड़कों से हिंसक कुत्तों को हटाना जरूरी है।
- रोजाना हजारों मामलों में लोग कुत्तों के हमलों का शिकार हो रहे हैं।
आगे क्या?
अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हैं। कोर्ट को तय करना है कि —
- 11 अगस्त के आदेश पर अंतरिम रोक लगाई जाए या नहीं।
- क्या दिल्ली-NCR में कुत्तों को स्थायी रूप से शेल्टर होम में रखने का आदेश जारी रहेगा।
- या फिर ABC नियमों के तहत नसबंदी और टीकाकरण के बाद उन्हें वापस छोड़ा जाएगा।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट आवारा कुत्तों मामला अब सिर्फ कानून का सवाल नहीं है, बल्कि यह मानव सुरक्षा, पशु अधिकार और शहरी प्रबंधन के बीच संतुलन का मुद्दा बन चुका है।
एक तरफ बच्चों की सुरक्षा, रेबीज पर नियंत्रण और साफ-सुथरे सार्वजनिक स्थानों की जरूरत है, तो दूसरी तरफ जानवरों के साथ मानवीय व्यवहार और संवैधानिक प्रावधानों का पालन भी जरूरी है।
आने वाले दिनों में कोर्ट का फैसला न सिर्फ दिल्ली-NCR बल्कि पूरे देश में आवारा कुत्तों के प्रबंधन की दिशा तय करेगा।