कौन थे बी. एन. राव? (Who was B. N. Rau?)
बी. एन. राव भारतीय संविधान निर्माता एक प्रख्यात भारतीय सिविल सेवक, न्यायविद, और संविधान विशेषज्ञ थे। इनका जन्म 26 फरवरी 1887 को मैंगलोर (कर्नाटक) में हुआ था। वह भारतीय संविधान के प्रारूप की रूपरेखा तैयार करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिन्हें “भारतीय संविधान के आर्किटेक्ट्स” में गिना जाता है।
वे भारतीय प्रशासनिक सेवा (ICS) के सदस्य थे और उन्होंने कई महत्वपूर्ण न्यायिक और प्रशासनिक पदों पर कार्य किया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
बेनेगल नरसिंह राव (बी. एन. राव) का जन्म 26 फरवरी 1887 को कर्नाटक के दक्षिण केनेरा ज़िले के कारकल नामक स्थान पर हुआ था। वे एक शिक्षित और प्रतिष्ठित सारस्वत ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता एक प्रसिद्ध डॉक्टर थे। राव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा केनेरा हाई स्कूल, मंगलोर से पूरी की और पूरे मद्रास प्रेसीडेंसी में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए। 1905 में उन्होंने स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की, जिसमें अंग्रेज़ी, संस्कृत और भौतिकी तीनों विषयों में प्रथम श्रेणी प्राप्त की। छात्रवृत्ति पर वे 1909 में इंग्लैंड के ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज गए। वहीं से उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा उत्तीर्ण की और 50 अभ्यर्थियों के बैच में अकेले भारतीय बने।
बी. एन. राव का सम्मान और नई ज़िम्मेदारियाँ
सन् 1938 में उन्हें ‘नाइटहुड’ की उपाधि दी गई। 1944 में सेवा निवृत्ति के बाद तेज बहादुर सप्रू ने उन्हें जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री पद का दायित्व संभालने के लिए आमंत्रित किया। राव श्रीनगर गए, लेकिन महाराजा हरि सिंह की कार्यशैली से असहमति होने के कारण उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। अपने त्यागपत्र में उन्होंने लिखा कि “बिना विश्वास किए निर्णयों को मानना ईमानदारी नहीं होगी।”
बी. एन. राव का बर्मा के संविधान निर्माण में योगदान
सन् 1946 में बर्मा (अब म्यांमार) के प्रधानमंत्री यू आँग सान ने उन्हें बर्मा के संविधान निर्माण में सहायता के लिए बुलाया। बेनेगल नरसिंह राव ने इस कार्य को अत्यंत दक्षता के साथ पूरा किया। इसके बाद उन्हें कलकत्ता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनने का प्रस्ताव मिला, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।
भारतीय संविधान निर्माण में निर्णायक भूमिका
जुलाई 1946 में उन्हें संविधान सभा का संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया। उन्होंने इस पद के लिए अवैतनिक रूप से कार्य करने का प्रस्ताव रखा। उनका मानना था कि इससे उनकी निष्पक्षता बनी रहेगी और संविधान निर्माण में देरी के लिए संविधान सभा को दोष नहीं दिया जाएगा।
प्रारंभिक मसौदा और संविधान की नींव
भारतीय संविधान के पहले 243 अनुच्छेदों का प्रारंभिक मसौदा राव ने तैयार किया। उन्होंने एक संघीय ढांचे की परिकल्पना की जो भारत सरकार अधिनियम 1935 पर आधारित थी। उनके द्वारा तैयार किए गए मसौदे में नीति निदेशक सिद्धांतों के लिए 41 प्रावधान शामिल थे।
भारतीय नेताओं द्वारा सराहना
संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान पर हस्ताक्षर से पहले राव के योगदान की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने न केवल अपने ज्ञान और पांडित्य से बल्कि अपनी निष्पक्ष सलाह से भी संविधान सभा की मदद की। 25 नवंबर 1949 को डॉ. प्रसाद ने कहा, “संविधान बनाने का जो श्रेय मुझे दिया जा रहा है, वास्तव में मैं उसका अधिकारी नहीं हूँ। उसके वास्तविक अधिकारी बेनेगल नरसिंह राव हैं।”
बी शिवाराव की पुस्तक में वर्णन
बी शिवाराव की पुस्तक ‘India’s Constitution in the Making’ में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने राव को संविधान सभा के लिए अपरिहार्य व्यक्ति बताया। उन्होंने लिखा कि राव ने दुनिया के प्रमुख संविधानों का अध्ययन किया और उन्हें सरल भाषा में संविधान सभा के सदस्यों को समझाया। पुस्तक के 29 अध्यायों में राव द्वारा तैयार किए गए महत्वपूर्ण दस्तावेज़ शामिल हैं। जब भी संविधान सभा में कोई जटिल विषय उठता था, राव का परामर्श ही अंतिम माना जाता था।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर योगदान
सन् 1949 से 1952 तक वे संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि रहे। इसके पश्चात उन्हें हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की पीठ में न्यायाधीश नियुक्त किया गया। यह उनके अद्वितीय अनुभव और वैश्विक दृष्टिकोण का प्रमाण था।
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निधन और उपेक्षा
26 फरवरी 1953 को जेनेवा में उनका निधन कैंसर के कारण हो गया। यह विडंबना है कि भारतीय संविधान के निर्माण में इतनी अहम भूमिका निभाने के बावजूद राव को आज भी उस मान्यता और सम्मान से वंचित रखा गया है जिसके वे पूर्ण रूप से अधिकारी थे। उनका जीवन एक आदर्श और प्रेरणा है, जो सत्य, सेवा और समर्पण की मिसाल है।