प्यार और आस्था का पावन पर्व — करवा चौथ

करवा चौथ का त्योहार हर साल कार्तिक मास की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।

करवा चौथ का महत्व

यह पर्व केवल व्रत नहीं, बल्कि पति-पत्नी के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। सुहागिनें पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं।

करवा चौथ की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, वीरावती नामक रानी ने अपने भाईयों के छल से व्रत तोड़ दिया और उसके पति की मृत्यु हो गई। उसने सच्चे मन से व्रत दोबारा रखा और अपने पति को पुनः जीवन मिला।

व्रत की शुरुआत

सुबह सरगी खाने से व्रत शुरू होता है, जो सास द्वारा दिया जाता है। इसके बाद दिनभर बिना पानी के व्रत रखा जाता है।

सोलह श्रृंगार

शाम को महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं — चूड़ियाँ, बिंदी, मेहंदी, सिंदूर और साड़ी पहनती हैं।

पूजा विधि

रात को महिलाएं करवा चौथ की कथा सुनती हैं, फिर करवा और चंद्रमा की पूजा करती हैं।

चाँद का इंतज़ार

शाम ढलते ही सभी महिलाओं की निगाहें आसमान पर होती हैं। चाँद का दीदार सबसे बड़ा सुख बन जाता है।

व्रत खोलना

चाँद को अर्घ्य देने के बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर व्रत खुलवाता है। यही होता है प्रेम का सच्चा क्षण।

आधुनिक करवा चौथ

आज के समय में भी करवा चौथ का जोश बरकरार है। कई जोड़े साथ में एक-दूसरे के लिए व्रत रखते हैं।

शुभकामनाएँ

आप सभी को करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएँ! आपका दांपत्य जीवन खुशियों और प्रेम से भरा रहे।